घर छोड़ा पर घुटने नहीं टेके ; कहानी पहली भारतीय महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले की

घर छोड़ा पर घुटने नहीं टेके ;  कहानी पहली भारतीय महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले की

किसी शिक्षिका पर सिर्फ इसलिए कीचड़ – पत्थर फेंके जाएं और राह चलते गालियां दी जाएं क्योंकि वह बालिकाओं को पढ़ाने के लिए जाने का साहस (!) कर रही थी, इस पर सहज कौन भरोसा करेगा ? लेकिन यह पौने दो सौ साल पहले का सच है , जब स्त्रियों के लिए पढ़ना गैरजरूरी माना जाता था। ऐसे दौर में एक स्त्री और वह भी छोटी जाति से ! वे न केवल शादी के बाद पढ़ीं बल्कि पढ़ कर बालिकाओं के बीच अज्ञान का अंधियारा दूर करने के लिए शिक्षिका के तौर पर सामने आईं । सावित्री बाई फुले को प्रथम भारतीय महिला शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है। सच तो ये है कि जीवन के अन्य अनेक क्षेत्रों में भी वे प्रथम थीं।
पत्नी – बेटी द्वारा पति/पिता को मुखाग्नि देने की खबरें तो अब प्रायः मिल जाती हैं लेकिन 1890 में किसी स्त्री द्वारा यह साहस करने पर उसे व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था। सामाजिक कुरीतियों , अगड़ों – पिछड़ों , छुआछूत, पुरुष – महिला के बीच भेदभाव , सती प्रथा, भ्रूण हत्या आदि के खिलाफ जीवन पर्यन्त संघर्षरत सावित्री बाई फुले , पति ज्योति बा फुले के निधन के बाद अंतिम संस्कार को लेकर हो रहे विवाद के बीच आगे आई थीं और चिता को अग्नि देकर संदेश दे दिया था कि स्त्री के लिए कुछ भी वर्जित नहीं है। उसे कमतर न समझें। उसके लिए सब संभव है।
सिर्फ 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फुले की पत्नी बनी सावित्री बाई फुले शादी के मौके पर निरक्षर थीं। उनका सौभाग्य था उनका विवाह ऐसे इंसान से हुआ जिसका जन्म ही समाज सुधार और सामाजिक कुरीतियां के विरुद्ध संघर्ष के लिए हुआ था। ज्योति बा ने इसकी शुरुआत घर – परिवार से अशिक्षित पत्नी को शिक्षित करके की। सावित्री बाई का आगे का जीवन हर कदम पर सिर्फ पति का साथ निभाने का नहीं बल्कि महिला समाज को हर मोर्चे पर सकारात्मक संघर्ष के लिए तैयार करने और सशक्त करने का था। पति के साथ प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद सावित्री बाई को आगे की शिक्षा में ज्योति बा के दोस्तों सखाराम यशवंत परांजपे केशवराम शिवराम भावलकर की मदद मिली। आगे उन्होंने टीचर्स ट्रेनिंग के दो कोर्स भी किए। लेकिन उस दौर की परंपराओं के खिलाफ किसी स्त्री और खासतौर पर निचली जाति की स्त्री के लिए पढ़ाई करना और आगे का रास्ता इतना आसान नहीं था। नाराज अगड़ी जाति के लोगों के विरोध के बीच ज्योति बा – सावित्री बाई के पास दो विकल्प थे घुटने टेकना या फिर घर छोड़ना। दोनों ने 1849 में दूसरे विकल्प को चुना और अपना रास्ता बना, दूसरों को अपने चरण – चिन्हों का अनुकरण करने का इतिहास रच दिया।
घर छोड़ने के बाद दंपति को दोस्त उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा बेगम शेख का सहयोग मिला। सावित्री बाई और फातिमा ने ग्रेजुएशन साथ ही की। इन दोनों ने शेख के घर ही 1849 में पहला स्कूल खोला। 1850 में सावित्री बाई और ज्योति बा ने दो और स्कूल खोले। आगे इस कड़ी में 1852 तक कुल 18 स्कूल शुरू हुए। शुरुआत में पूना में नौ बालिकाएं स्कूल पहुंची। फिर 25 पर और आगे वहां के तीन अन्य स्कूलों को मिलाकर 150 बालिकाएं घर से पढ़ने के लिए निकलीं। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। कदम – कदम पर प्रतिरोध। स्कूल के रास्ते सावित्री बाई पर गालियों की बरसात होती। उन पर सड़े टमाटर, अंडे, गोबर -गन्दगी और ईंट -पत्थर तक फेंके जाते। ऊंची जाति के विरोध करने वाले लोग शूद्रों और बालिकाओं को शिक्षित करने के उनके कार्य को पाप बताते थे। सावित्री बाई ने ऐसे हर विरोध को दरकिनार किया। स्कूल जाते समय वे अपने बैग में एक अतिरिक्त साड़ी लेकर चलती थीं।
बालिकाओं को स्कूल आने के लिए प्रेरित करने के लिए फुले दंपति ने नई पहल की। आर्थिक तौर पर कमजोर लेकिन मेधावी बालिकाओं के लिए वजीफे का इंतजाम किया। महाराष्ट्र में कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 52 निःशुल्क हॉस्टल बनाए। स्कूलों में इंग्लिश, गणित , साइंस, सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई पर खास ध्यान दिया। नियमित पैरेंट – टीचर्स मीटिंग शुरू कीं। इन प्रयासों के नतीजे भी दिखे। इन स्कूलों की बेहतर पढ़ाई ने सरकारी स्कूलों के लिए चुनौती बढ़ाई। कमजोर और दलित वर्ग की बालिकाओं के दाखिले बढ़े। लेकिन उच्चवर्ण के पुरातनपथियों ने रास्ते में रूकावटें भी खूब डालीं। सावित्री बाई यह कहते हुए आगे बढ़ती रहीं कि आपका विरोध मुझे अपना काम जारी रखने के लिए प्रेरित करता है।
सावित्री बाई की कोशिशें बालिकाओं को शिक्षित करने तक सीमित नहीं रही। वे और उनके महान पति ज्योति बा फुले जानते थे कि सामाजिक विषमता और कुरीतियों को दूर किए बिना दलितों -कमजोरों के जीवन का अंधियारा दूर नहीं होगा। फुले दंपति न 24 सितंबर 1873 को सत्य शोधक समाज का गठन किया। सामाजिक समानता के उद्देश्य से गठित इस संस्था के दरवाजे बिना भेदभाव के जाति -वर्ग – समूह के लिए खुले थे। अगला विस्तार सत्य शोधक विवाह था, जिसे संपादित करने के लिए किसी पुरोहित करने की आवश्यकता नहीं थी। बिना आडंबर दहेजविहीन इन शादियों में नव दंपति शिक्षा और समानता की शपथ के साथ दांपत्य सूत्र में बंधते थे।
सच्चे अर्थों में सावित्री बाई महिला सशक्तिकरण की नायिका थीं। 1852 में उन्होंने महिला अधिकारों की आवाज उठाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की। बाल विवाह ,दहेज, सती प्रथा ,भ्रूण हत्या और पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कमतर आंकने की किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध किया। विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया। शारीरिक शोषण की वजह से गर्भवती होने वाली विधवाओं,
बलात्कार पीड़ित लड़कियों और अनाथों के संरक्षण के लिए आश्रम स्थापित किए। सार्वजनिक कुओं से पानी लेने पर दलितों पर लगी रोक का उन्होंने विरोध किया। अपने घर के बाहर सब वर्गों के लिए कुंआ बनवाया। उन्होंने नाइयों को विधवाओं के सिर के बाल मुड़ने से मना किया और विधवाएं परिवार – समाज के बीच साथ और बराबरी के साथ बैठें , इसके लिए जनजागरण अभियान चलाए।
महाराष्ट्र में 1875 -77 के अकाल के दौरान सावित्री बाई की अगुवाई में सत्य शोधक समाज के कार्यकर्ताओं ने व्यापक पैमाने पर भूख -प्यास से मरते लोगों की मदद की भरपूर कोशिश की। 1896 में महाराष्ट्र एक बार फिर अकाल की चपेट में था। सावित्री बाई फिर से अपने सहयोगियों के साथ पीड़ितों की मदद में जुटी रहीं। अगली विपदा प्लेग की थी। कभी न थकने और रुकने वाली सावित्री बाई और उनके दत्तक पुत्र यशवंत ने पूना के बाहरी हिस्से में प्लेग पीड़ितों के इलाज के लिए एक क्लीनिक स्थापित किया था। सावित्री बाई को पता चला कि पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ का पुत्र प्लेग की चपेट में आ गया है। वे फौरन ही वहां पहुंची और बीमार बच्चे को अपनी पीठ पर लेकर क्लीनिक पहुंची। दुर्भाग्य से वे भी प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया। 3 जनवरी 1831 को जन्मी सावित्री बाई ने जीवन के हर मोड़ पर ऐसे प्रेरक कार्य किए जिनके कारण वे आज भी याद की जाती हैं। 28 नवंबर1890 को पति ज्योति बा गोविंद राव के निधन के बाद दत्तक पुत्र यशवंत और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच कौन दाहसंस्कार करे , इसे लेकर विवाद था। सावित्री बाई आगे बढ़ीं और चिता को अग्नि दे दी। वे सच में ” क्रांति ज्योति ” थीं। लेखक वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना

मिशन विजय

Mission Vijay Hindi News Paper Sultanpur, U.P.

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