आरोपित मरते गए और 34 साल में न्यायालय तक नहीं पहुंची विवेचना

अंबेडकरनगर: वाह री पुलिस की कार्यशैली, मुकदमा दर्ज हुए 34 साल गुजर गए, आरोपित मरते गए लेकिन विवेचना अभी तक न्यायालय नहीं पहुंची। गोंड और मझवार जाति के 60 लोगों को अनुसूचित जाति का अवैध जाति प्रमाणपत्र जारी करने के आरोप में वर्ष 1987 में कोतवाली टांडा में मुकदमा दर्ज हुआ था। इसमें प्रमाणपत्र हासिल करने वालों को नामजद करने के अलावा तत्कालीन तहसीलदार, कानूनगो व तीन लेखपालों को आरोपपत्र देने के साथ निलंबित भी किया गया था। इसके बाद से पुलिस विवेचना में गुनाह खंगालने के बजाए दबा गई। अब रामपुर कला गांव के अजय कुमार गोंड की शिकायत पर पत्रावली और मुकदमे की छानबीन शुरू होते विभाग में हड़कंप मच गया है। अब पत्रावली प्रस्तुत करने में विभागीय एवं न्यायालय की कार्रवाई के डर से पुलिस कर्मी इसे कोर्ट भेजने से कतरा रहे हैं।गोंड और मझवार जाति के 60 लोगों का टांडा तहसील से वर्ष 1987 तक अनुसूचित जाति वर्ग के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया। इसे अवैध करार देते हुए तत्कालीन अपर तहसीलदार केपी सिंह ने टांडा व जहांगीरगंज समेत विभिन्न गांवों के 60 आरोपितों पर कोतवाली टांडा में अपराध संख्या 101/87 में केस दर्ज कराया था। इसकी विवेचना करने में पुलिस को 31 साल लग गए और वर्ष 2018 में उपनिरीक्षक राहुल कुमार ने अंतिम रिपोर्ट लगाकर सीओ कार्यालय भेज दिया गया। यहां से तीन दिन में सीओ ने इसे न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए कोतवाली टांडा में वापस भेज दिया। यहां पहुंचकर फाइल फिर से लापरवाही के डब्बे में बंद हो गई। असलियत पुलिस अपनी लापरवाही को छिपाने तथा इसके प्रस्तुत करने पर विभाग व न्यायालय से होने वाली कार्रवाई से बचने में लगी रही। वक्त के साथ कोतवाली टांडा की कमान संभालने वाले प्रभारी इससे किनारा कसते रहे और बिल्ली के गले में कोई घंटी बांधने का तैयार नहीं हुआ। अब रामपुर कला गांव के अजय कुमार गोंड की शिकायत पर मामला फिर से गर्म हुआ। फाइल की तलाश में कोतवाली व सीओ कार्यालय खींचतान मच गई। इस बीच कोतवाली टांडा ने बगैर अभिलेखों को खंगाले मुख्यमंत्री कार्यालय को उक्त फाइल के यहां नहीं होने की फर्जी सूचना भेज दी। एसपी का शिकंजा कसना पर फाइल को तलाश सघनता से सीओ ने शुरू कराई तो यह कोतवाली टांडा में मिली है। अब विलंब करने वालों पर आरोप तय करने की जांच सीओ सदर कर रहे हैं। पुलिस उपाधीक्षक सदर अशोक कुमार सिंह ने बताया कि मामले की जांच गतिमान है। इसके पूरा होने के बाद तथ्य सामने आएंगे।
वादी और कई आरोपित मर गए : पुलिस मुकदमा दर्ज कर 34 साल में विवेचना पूरी कर पत्रावली न्यायालय तक नहीं पहुंचा सकी और इस बीच वादी व कई आरोपित मर गए हैं। दर्ज इस मुकदमे में दोष सिद्ध होने पर सात साल की सजा का प्रविधान है। जबकि न्यायालय की बाध्यता भी इसी सात साल में मामले को संज्ञान में लेने तक होती है। विधि के जानकार बताते हैं कि इसके अब प्रस्तुत होने पर भी न्यायालय संज्ञान नहीं लेगा।

मिशन विजय

Mission Vijay Hindi News Paper Sultanpur, U.P.

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