औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होना अभी बाकी है- डॉ.इंद्रमणि कुमार
राणा प्रताप पीजी कालेज में विचार गोष्ठी का आयोजन
सुलतानपुर। भारत को सांस्कृतिक स्तर पर गुलाम बनाने के लिए हमारी ज्ञान परम्परा को नष्ट किया गया। हम औपनिवेशिक दासता से मुक्त भले ही हो गये हों लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होना अभी बाकी है। यह बातें राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ इन्द्रमणि कुमार ने कहीं।वह भारतीय ज्ञान परम्परा के अन्तर्गत आयोजित साहित्य चिंतन की भारतीय परम्परा विषयक विचार गोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे।उन्होंने कहा कि “आचार्य भरत का नाट्य शास्त्र भारतीय साहित्य परम्परा का प्राचीन ग्रंथ है। इसको पंचम वेद का दर्जा दिया गया है।”असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा ने विश्व की प्रगति और विकास का आधार खड़ा करने के साथ ही शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
विचार गोष्ठी में महाविद्यालय के एम.ए तृतीय सेमेस्टर के छात्र आशुतोष पाण्डेय ने कहा कि “वैदिक और लौकिक संस्कृत का साहित्य भारतीय परम्परा का बखान करता है।” एम.ए प्रथम सेमेस्टर की छात्रा अर्चना यादव ने कहा “हिन्दी साहित्य में इतिहास लेखन की परम्परा काफी पुरानी है।”गोष्ठी की अध्यक्षता एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रंजना पटेल व आभार ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विभा सिंह ने किया। इस अवसर पर एम.ए हिन्दी के सभी सेमेस्टर के विद्यार्थी उपस्थित रहे।