पांच जून विश्व पर्यावरण दिवस पर सुल्तानपुर जिला विकास अधिकारी प्रकाश डाला
भारतीय जनजीवन में वृक्ष सात्विक अंतश्चेतना को पुलकित करने की सामथ्र्य और औषधीय गुणों की सम्पन्नता के साथ ही पर्यावरण परिष्कार तथा परिमार्जन की भी अद्भुत शक्ति से सम्पन्न होते हैं। वृक्ष प्रकृति की शाश्वत और सनातन परम्परा के द्योतक और हमारे अति-आत्मीय पूर्वज जैसे ही है। जिनके हृदय में जीव मात्र के प्रति कल्याणकारी एवं पवित्र भावना सदैव विद्यमान रही है। जिनका पर्यावरण संरक्षण एवं हरितिमा संवर्धन में अप्रतिम योगदान है। ये पृथ्वी की नैशर्गिंक सुषमा को अक्षुण्ण रखने में सहायक हैं। संत तुलसीदास ने वृक्षों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि – संत विटप सरिता गिरि धरनी। परहित हेतु सवहन के करनी। इनका सानिध्य प्राणियों के जीवन में सुचिता, मुदिता एंव अभिराम, प्रसन्नता प्रदान करता है। विहंगों को शरण प्रदाता के रूप में एवं वृक्षों के छाव में श्रान्त, क्लान्त और भ्रान्त पथिकों को आश्रय प्रदान करता है। वृक्षों का त्यागमय, यज्ञमय, प्रेममय और सेवामय जीवन हमारे प्रेरणास्रोत हैं। ये झुक कर अत्यन्त विनम्र भाव से पाषाण, प्रहार करने पर भी हमें फल, फूल प्रदान कर अपनी उदारता, धरती से जीवन सुधा प्राप्त करने के बदले अपनी सर्वसम्पत्ति अर्पित कर कृतज्ञता और हरे भरे रहने पर भोज्य पदार्थ अर्जित करने और सूख जाने पर सम्पूर्ण आत्माहूति देकर प्राणियों को शीत पीड़ा से ताप देकर मुक्त कराते हैं। वस्तुतः वृक्ष ही हमारे प्राकृतिक, सांस्कृतिक , आध्यात्मिक और सामाजिक परिवेष में अपूर्ण संतुलन बनाए रखने में पूर्णरूपेण सहायक हैं। वैसे ही चिन्तन करें तो हम पाते हैं कि जीव और वन का युगों-युगों से साथ रहा है। जहां प्रकृति में संतुलन बना है, वहां हमें समस्त वरदान मिला है। जैसे शुद्ध हवा, धूप, पानी, शांति। जहां प्रकृति का असंतुलन हुआ है वहां जहरीला वातावरण, करकश कोलाहल, अनावृष्टि, भूस्खलन, बाढ़, भूकम्प इत्यादि प्राकृतिक आपदा मानव को नसीब होती है। वैसे भी वृक्षों से मानव समाज को प्रत्यक्ष और परोक्ष कई लाभ प्राप्त होते हैं। किसी कवि ने कहा है कि मैं हूं द्वार कुटी का तेरे, और मनुष्य का चिर साथी। शैशव में पलना हूं सबका, सांसों की अन्तिम थाती। मैं उदार, भोजन भूखों का, सुषमा का साकार सुमन, मानव एक निवेदन तुमसे नष्ट न कर मेरा जीवन।
हमारे आर्ष ऋषियों ने भी वृक्षों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि छाया मन्दस्य कुर्वंति, तिष्ठन्ति स्वयमातपे। फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरूषः इव। महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र वसु द्वारा खोजे गए सेसिमोग्राफ से यह सिद्ध हो चुका है कि वृक्षों में भी मानव सदृष्य क्रियाएं हैं। वे भी अनुभव करते है तथा प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया उनमें भी होती है। उन्हें भी किसी पधारे हुए आगन्तुक का आभास होता है। इसलिए हमें वृक्षों को भी स्वयं के समान समझकर आदर का भाव प्रदर्शित करते हुए उनके साथ दया का बर्ताव करना चाहिए। जनसंख्या के तीव्रगामी विस्फोट से आज अनेकानेक समस्याएं किसी भी देश के समक्ष उत्पन्न हो रही है। जिसमें पर्यावरण प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है। यदि प्रदूषण का यही हाल रहा तो सच मानिये अगले 50 वर्षों में वायु सांस लेने लायक नहीं रह पायेगी। तथा पानी पीने योग्य नहीं रह पायेगा। प्रदूषण के संदर्भ में एक अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिक कार्ल सागन का कथन है कि यदि वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड और क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि हानिकारक गैसों की मात्रा इसी प्रकार बढ़ती रही तो सन् 2050 ई0 तक भारत सहित पूरे विश्व में व्यापक सूखा पड़ेगा, जल संसाधनों में भारी कमी आएगी। वायुमंडल को संरक्षण प्रदान करने वाली ओजोन परत टूटने लगेगी। अतः यदि हम पर्यावरण को सुखनुमा व मंद सुगन्ध वायु की मिठास कायम रखना चाहते हैं तो हम सभी को वृक्षारोपण को एक जन अभियान बनाकर शुरू करना एक अत्यन्त कारगर कदम होगा। जिसमें शासकीय प्रयासों की भूमिका प्रशंसनीय रोल अदा करेगी। जीना यदि चाहो तुम सुख से, ऊँचा जानो तरूओं को बुत से।