आखिर क्या है समान नागरिक संहिता,भारत में क्यों पड़ी इसकी आवश्यकता, क्या होंगे फायदे, कहां-कहां है लागू,क्यो हो रही है पूरे देश मे इस पर चर्चा जाने विस्तार से
दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए केंद्र को इसे लागू करने के लिए समुचित कदम उठाने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि देश जाति, धर्म और समुदाय से ऊपर उठ रहा है। ऐसे में समान नागरिक संहिता समय की मांग और जरूरत है। जब कोर्ट इसकी वकालत कर रहा है तो ऐसे में हमें इसके सभी पहलुओं को जानने की जरूरत है। समान नागरिक संहिता का मतलब धर्म और वर्ग आदि से ऊपर उठकर पूरे देश में एक समान कानून लागू करने से होता है। समान नागरिक संहिता लागू हो जाने से पूरे देश में शादी, तलाक,उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे सामाजिक मुद्दे सभी एक समान कानून के अंतर्गत आ जाते हैं। इसमें धर्म के आधार पर कोई अलग कोर्ट या अलग व्यवस्था नहीं होती।
क्या है अनुच्छेद 44
संविधान के मसौदे में अनुच्छेद 35 को अंगीकृत संविधान के आर्टिकल 44 के रूप में शामिल कर दिया गया और उम्मीद की गई कि जब राष्ट्र एकमत हो जाएगा तो समान नागरिक संहिता अस्तित्व में आ जाएगा। अनुच्छेद 44 राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने का निर्देश देता है। कुल मिलाकर अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या को खत्म करके देशभर में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बढ़ाना है।
क्यों पड़ी जरूरत
1- अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे।
2- शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
3- समान नागरिक संहिता की अवधारणा है कि इससे सभी के लिए कानून में एक समानता से राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति में भी सुधार की उम्मीद है।
क्या फायदे होंगे
– कानूनों का सरलीकरण : समान संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।
– लैंगिक न्याय : यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
– समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण: समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
– धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिए।
विरोध करने वालों का तर्क
– समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है
– भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।
– सेक्युलर देश में पर्सनल लॉ में दखलंदाजी नहीं होना चाहिए। समान नागरिक संहिता बने तो धार्मिक स्वतंत्रता का ध्यान रखा जाए।
इन देशों में लागू
अमेरिका,आयरलैंड,पाकिस्तान,बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं,जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है। इनमें से कुछ देशों की समान नागरिक संहिता से तमाम मानवाधिकार संगठन सहमत नहीं हैं