……बड़े वे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी लाल जी एवं राम अचल राजभर के निष्कासन की पटकथा
जैसी करनी वैसी भरनी
घनश्याम चंद खरवार ने ही अंबेडकर नगर (अकबरपुर ) सीट जीतकर खोला था लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी का खाता
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले आज हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
यह पंक्तियां बहुजन समाज पार्टी से पार्टी विरोधी गतिविधियों एवं अनुशासनहीनता के आरोपों में निष्कासित किए गए कटेहरी विधायक पूर्व बसपा प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री तथा बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा एवं पूर्व मंत्री अकबरपुर विधायक राष्ट्रीय महासचिव व राम अचल राजभर पर सटीक बैठती है। राम अचल राजभर एवं लाल जी वर्मा के बसपा से निष्कासन की पटकथा काफी पहले ही लिखी जा चुकी थी ।सूत्रों की माने तो उक्त दोनों नेता ना सिर्फ गोपनीय तरीके से पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे थे ।इसके अलावा दूसरे दलों में जाने की चर्चाएं भी हो रही थी ।पंचायत चुनाव में पूर्व मंत्री राम अचल राजभर एवं पूर्व मंत्री लालजी वर्मा पार्टी द्वारा समर्थित प्रत्याशियों से इतर ना सिर्फ अपने लोगों को चुनाव मैदान में उतारे बल्कि पार्टी प्रत्याशियों के विरोध में गांव-गांव घूमकर प्रचार-प्रसार भी किया। जिससे पार्टी को काफी क्षति हुई दोनों नेताओं एवं उनके करीबियों ने बसपा प्रत्याशियों के विरोध में प्रचार प्रसार किया। जिसकी पूरी हकीकत बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती के संज्ञान में आ गई ।अनुशासन को सर्वोपरि मानने वाली बसपा सुप्रीमो को इस दोनों नेताओं की हरकतें काफी नागवार लगी ।और उन्होंने लाल जी एवं रामअचल राजभर को बसपा से बाहर का रास्ता दिखाया ।एक बार फिर यह साबित कर दिया कि बसपा में व्यक्ति नहीं काडर एवं अनुशासन ही महत्वपूर्ण है ।अनुशासनहीनता किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोई व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा क्यों ना हो दल के अनुशासन से बड़ा नहीं हो सकता है ।वैसे भी राम अचल राजभर एवं लालजी वर्मा का निष्कासन अलानाहक नहीं है लाल जी व रामअचल के निष्कासन की बुनियाद पहले ही पढ़ चुकी थी ।जब पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व सांसद घनश्याम चंद खरवार की बहुजन समाज पार्टी में वापसी हो गई और उन्हें मुख्य जोनल कोऑर्डिनेटर समेत कई महत्वपूर्ण सांगठनिक जिम्मेदारियां सौंप दी गई घनश्याम चंद खरवार बसपा की स्थापना के समय से ही पार्टी से जुड़े थे ।उन्हें वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में अकबरपुर अंबेडकरनगर संसदीय सीट से सपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को 25000 मतों के अंतर से हराकर लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी का खाता खोला था। क्योंकि वर्ष 1993 के सपा बसपा गठबंधन में राम अचल राजभर डॉक्टर मसूद एवं राम लखन वर्मा मंत्री बनाए गए थे लिहाजा उसके बाद घनश्याम चंद खरवार का लोकसभा चुनाव जितना एवं पार्टी प्रमुख का करीबी होना इन लोगों को नागवार लगने लगा। कई मसलों पर घनश्याम चंद खरवार एवं राम अचल राजभर के करीबी आमने-सामने हो जाया करते थे ।बाद में राम लखन वर्मा एवं डॉक्टर मसूद अहमद को सुश्री मायावती ने ना सिर्फ अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया ।बल्कि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया। डॉक्टर मसूदा अहमद के निष्कासन के बाद लालजी वर्मा बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए ।और रामअचल राजभर ने अपने करीबी त्रिभुवन दत्त को बहुजन समाज पार्टी का जिला अध्यक्ष बनवा दिया ।घनश्याम चंद खरवार यही मात खा गए ।घनश्याम चंद खरवार को सुश्री मायावती जी अकबरपुर सीट से 1998 एवं 1999 में लोकसभा चुनाव खुद लड़ने के उपरांत राज्यसभा में भेज दिया। पार्टी में लालजी वर्मा राम अचल राजभर एवं त्रिभुवन दत्त का कद बढ़ता गया। उपरोक्त तीनों नेता घनश्याम चंद खरवार को वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के जरिए हासिये पर लगाने की कोशिश करते रहे ।अंततः तीनों नेताओं की साजिशों के शिकार घनश्याम चंद खरवार हो गए ।और उन्हें बसपा से निष्कासित भी होना पड़ा ।घनश्याम चंद खरवार सपा से वर्ष 2007 में जहांगीर गंज विधानसभा का चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिल पाई ।बाद में जब सारी साजिशों का खुलासा हुआ तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने खरवार को ना सिर्फ पार्टी में वापस ले लिया ।बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी समय-समय पर देती रही । इस समय घनश्याम चंद खरवार को पार्टी सुप्रीमो का बेहद विश्वास पात्र एवं करीबी माना जाता है। त्रिभुवन दत्त पार्टी में धीरे-धीरे किनारे किए जाने लगे ।उनका निष्कासन हो पाता कि उससे पहले ही उन्होंने अलग राह पकड़ कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लिया ।रामअचल व लाल जी पार्टी में बने रहे लेकिन पंचायत चुनाव में दोनों की पार्टी विरोधी गतिविधियों ने बसपा नेतृत्व को उन्हें निष्कासन करने के लिए मजबूर कर दिया ।