वकालत के लिए COP की बाध्यता समाप्त करने की माँग वाली जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार काउंसिल से माँगा जवाब
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकालत के लिए COP (सर्टिफिकेट ऑफ़ प्रैक्टिस) की बाध्यता को चुनौती देते हुए दायर एक जनहित याचिका में सुनवाई के उपरांत बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल से जवाब माँगा। मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंडल और जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने मामले में जवाब दायर करने हेतु समय देते हुए मामले को अगली सुनवाई के लिए 16 दिसंबर को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। यह याचिका रत्नेश मिश्रा द्वारा अधिवक्ता रविनाथ तिवारी के माध्यम से दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि द सर्टिफिकेट एंड प्लेस ऑफ प्रैक्टिस रूल्स-2015 के कुछ उपबंध, एडवोकेट एक्ट-1961 के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि COP की बाध्यता अधिवक्ता अधिनियम के प्रविधानों के ख़िलाफ़ है है इसी लिए इसे अल्ट्रा वायरस घोषित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता रविनाथ तिवारी का कहना है कि अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 30 के मद्देनजर वकालत के अधिकार पर सीओपी जैसे प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते। इसके अलावा बार काउंसिल द्वारा जारी किया गया नामांकन प्रमाण पत्र किसी व्यक्ति को अधिवक्ता के रूप में नामांकित करते समय, कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं है जिसके लिए प्रमाण पत्र मान्य है, इसलिए सीओपी नियमों द्वारा ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।